Dr Avinash Dubey Best Nephrologist

डायलिसिस

डायलिसिस की जरूरत कब पड़ती है?
जब किडनी की कार्य क्षमता 80-90% तक घट जाती है तो यह स्थिति
एण्ड स्टेज किडनी डिजीज (ESKD) की होती है। इसमें अपशिष्ट उत्पाद और दव शरीर से बाहर नहीं निकल पाते हैं। विषाक्त पदार्थ जैसे क्रीएटिनिन और अन्य नाइट्रोजन अपशिष्ट उत्पादों के रूप में शरीर में जमा होने से मतली उल्टी, थकान सूजन और सांस फूलने जैसे दिखाई देते है इन्हें सामूहिक रूप से यूरोनिया कहते हैं। ऐसे समय में सामान्य चिकित्सा प्रबंधन अपर्याप्त हो जाता है और मरीज को डायलिसिस शुरू करने की आवश्यकता होती है। क्या डायलिसिस करने से किडनी फिर से काम करने लगती है? नहीं। क्रोनिक किडनी फेल्योर के मरीजों में डायलिसिस करने के बाद भी. किडनी फिर से काम नहीं करती है। ऐसे मरीजों में डायलिसिस किडनी के कार्य का विकल्प है और तबियत ठीक रखने के लिए नियमित रूप से हमेशा के लिये डायलिसिस कराना जरूरी है। लेकिन एक्यूट किडनी फेल्योर के मरीजों में थोड़े समय के लिए ही डायलिसिस कराने की जरूरत होती है। ऐसे मरीजों की किडनी कुछ दिन बाद फिर से पूरी तरह काम करने लगती है और बाद में उन्हें डायलिसिस की या दवाई लेने की जरूरत नहीं रहती है। डायलिसिस के कितने प्रकार है? डायलिसिस के दो प्रकार हैं :
हीमोडायलिसिस (Haemodialysis) इस प्रकार के डायलिसिस में डायलिसिस मशीन विशेष प्रकार के
क्षारयुक्त द्रव (Dialysate) की मदद से कृत्रिम किडनी (Dialyser) में खून को शुद्ध करता है।
1. पेरीटोनियल डायलिसिस (Peritonial Dialysis): इस प्रकार के डायलिसिस में पेट में एक खास प्रकार का कैथेटर नली (P.D. Catheter) डालकर विशेष प्रकार के क्षारयुक्त द्रव (P. D. Fluid) की मदद से, शरीर में जमा हुए अनावश्यक पदार्थ दूर कर शुद्धीकरण किया जाता है। इस प्रकार के डायलिसिस में मशीन की आवश्यकता नहीं होती है।
डायलिसिस में खून का शुद्धीकरण किस सिद्धांत पर आधारित है?
2 डीमोडायलिसिस में कृत्रिम किडनी की कृत्रिम झिल्ली और पेरीटोनियल डायलिसिस में पेट का पेरीटोनियम अर्धपारगम्य झिल्ली (सेमी
परमिएबल मेम्ब्रेन) जैसा काम करती है।
3 झिल्ली के बारीक छिदों से छोटे पदार्थ जैसे पानी, क्षार तथा अनावश्यक यूरिया, क्रिएटिनिन जैसे पदार्थ निकल जाते हैं। परन्तु शरीर के लिए आवश्यक बड़े पदार्थ जैसे खून के कण नहीं निकल सकते हैं।
4 डायलिसिस की क्रिया में अर्धपारगम्य झिल्ली (सेमीपरमिएबल मेम्ब्रेन)
के एक तरफ डायलिसिस का दव होता है और दूसरी तरफ शरीर का खून होता है।
5 ऑस्मोसिस और डियूजन के सिद्धांत के अनुसार खून के अनावश्यक
पदार्थ और अतिरिक्त पानी, खून से डायलिसिस दव में होते हुए
शरीर से बाहर निकलता है। किडनी फेल्योर की वजह से सोडियम, पाटैशियम तथा एसिड की मात्रा में परिवर्तन को ठीक करने का महत्वपूर्ण कार्य भी इस प्रक्रिया के दौरान होता है।
किसी मरीज को डीमोडायलिसिस और किस मरीज को पेरीटोनियल डायलिसिस से उपचार किया जाना चाहिए?
क्रोनिक किडनी फेल्योर के उपचार में दोनों प्रकार के डायलिसिस असरकारक होते हैं। मरीज को दोनों प्रकार के डायलिसिस के लाग-हानि की जानकारी देने के बाद मरीज की आर्थिक स्थिति, तबियत के विभिन्न पहलु घर से हीमोडायलिसिस यूनिट की दूरी इत्यादि मसलों पर विचार करने के बाद, किस प्रकार का डायलिसिस करना है करने के बाद, किस प्रकार का डायलिसिस करना है यह तय किया जाता है। भारत में अधिकतर जगहों पर डीमोडायलिसिस कम खर्च में, सरलता से तथा सुगमता से उपलब्ध है। इसी कारण डीमोडायलिसिस कराने वाले मरीजों की संख्या भारत में ज्यादा है। डायलिसिस कराने वाले मरीजों को भी आहार में परहेज रखना जरूरी होता है।
में डा. मरीज को डायलिसिस शुरू करने के बाद भी आहार में संतुलित मात्रा में पानी एवं पेय पदार्थ लेना, कम नमक खाना एवं पोटेशियम और फॉस्फोरस न बढ़ने देने की हिदायतें दी जाती है। लेकिन सिर्फ दवाई से उपचार करानेवाले मरीजों की तुलना में डायलिसिस से उपचार करानेवाले मरीजों के आहार में जयादा छूट दी जाती है और ज्यादा प्रोटीन और विटामिनयुक्त आहार लेने की सलाह दी जाती है।
 
डीमोडायलिसिस के मुख्य फायदे और नुकसान क्या है?
डीमोडायलिसिस के मुख्य फायदे : 1. कम खर्चे में डायलिसिस का उपचार। 2. अस्पताल में विशेषज्ञ स्टॉफ एवं डॉक्टरों द्वारा किए जाने के कारण
हीमोडायलिसिस सुरक्षित है।
3. कम समय मे ज्यादा असरकारक उपचार।
4. संक्रमण की संभावना बहुत ही कम होती है।
5. रोज कराने की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
6. कुछ मामलों में दर्द कम करने के लिए कुछ उपाय है जैसे सुई
लगाने की जगह निश्चेतना का उपयोग करना आदि। 7. अन्य मरीजों के साथ होनेवाली मुलाकात और चर्चाओं से मानसिक तनाव कम होता है।
डीमोडायलिसिस के मुख्य नुकसान:
1. यह सुविधा हर शहर / गाँव में उपलब्ध नहीं होने के कारण बार-बार
बाहर जाने की तकलीफ उठानी पड़ती है। 2. उपचार के लिए अस्तपाल जाना और समय नर्यादा का पालन करना पड़ता है।
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